अमुवि में आकाशी पुस्तकों पर अन्तर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन
अलीगढ़, 28 जूनः अमुवि के धर्मशास्त्र संकाय द्वारा इस्लामिक फिका अकादमी नई दिल्ली के सहयोग से आकाशी पुस्तकें और अन्य धार्मिक पुस्तकें - इतिहास और परिचय विषय पर आयोजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वेबिनार के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने विषय के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि हम एक बहुलतावादी समाज में रहते हैं और हमारे कई समान मूल्य हैं। हमें इन सामान्य मूल्यों को गंभीर रूप से लेना होगा जिसके परिणामस्वरूप स्वस्थ और सदाचारी समाज का निर्माण होगा। धर्मों के बारे में भ्रांतियाँ हैं, इन भ्रांतियों को दूर करने के लिए उनकी पवित्र पुस्तकों का अध्ययन करना होगा।
उन्होंने कहा कि पवित्र पुस्तकों के अलावा हमें एक-दूसरे की संस्कृति और भाषा को जानने की कोशिश करनी चाहिए। यदि हम एक-दूसरे के धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को समझेंगे तो राष्ट्र और समाजों के बीच चल रही गलतफहमियों का दूर होना निश्चित है। उन्होंने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में देश के सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए कई जुबानों, संस्कृतियों और धर्मों को अच्छी तरह से सिखाया जाता है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने भारतीय धर्मों को समझने के लिए अपनी किताबें पढ़ने पर जोर दिया।
धर्मशास्त्र संकाय के डीन प्रो. मुहम्मद सऊद आलम कासमी ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के अलावा, समकालीन धर्मों और उनकी पवित्र पुस्तकों को समझना महत्वपूर्ण है। आम तौर पर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि धार्मिक पुस्तकों में क्या उल्लेखित है और किन पुस्तकों को कानूनी दर्जा प्राप्त है। कौन सी पुस्तकें गौण हैं? साथ ही हमें यह समझना होगा कि सभी धर्मों में सामाजिक मूल्य सभी मनुष्यों की पूंजी हैं, इसलिए हमें इन सभी प्रबुद्ध मूल्यों को गहराई से समझना होगा और आगे बढ़ना होगा। धर्मों और संप्रदायों के अध्ययन का समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, भले ही इसे सावधानीपूर्वक और गहराई से किया जाए। भारत की सुंदरता इसकी धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक विविधता है। संवेदनशील और जीवित समाजों का प्रतीक यह है कि वह खुले तौर पर अच्छाई को स्वीकार करते हैं।
विशिष्ट अतिथि प्रो. अख्तरूल वासे, अध्यक्ष, मौलाना आजाद विश्वविद्यालय, जोधपुर ने अपने संबोधन में कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना के पहले दिन से ही सभी धर्मों को जोड़ने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि जब महाभारत और विभिन्न धार्मिक पुस्तकों के अनुवाद उर्दू में हुए तो इनको अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पब्लिकेशन डिवीजन ने बड़ी सावधानी से प्रकाशित किया। इसी तरह, आज यह समझना आवश्यक है कि मैक्स मर्लर को भारतीय धर्मों का पहला चित्रकार और शोधकर्ता माना जाता है। हालाँकि, तथ्य यह है कि अबू रिहान अल-बिरूनी ने सबसे पहले भारतीय सभ्यता और उसकी धार्मिक परंपराओं को पढ़ कर और धर्मों के अध्ययन की रेखाएँ निर्धारित कीं और सर सैयद अहमद खान ने धर्मों के अध्ययन को शिक्षण संस्थानों की जरूरत बताया। उन्होंने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता भारतीय संविधान का हिस्सा है।
इस्लामिक न्यायशास्त्र अकादमी के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने अपने संबोधन में कहा कि मुसलमान हमेशा खुले विचारों वाले रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस्लाम मूल रूप से सभी मानव जाति को अपनी इच्छानुसार धर्म और विश्वास अपनाने की अनुमति देता है।
धर्म और आस्था में अंतर स्वाभाविक है इसलिए यह हमेशा रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि आज मांग है कि हम अपने मदरसों और धार्मिक संस्थानों में धार्मिक अध्ययन और अंतरधार्मिक विभाग और अनुसंधान केंद्र स्थापित करें ताकि देश और समाज में सकारात्मक प्रभाव पड़े।
प्रो. जनथन लाल ने कहा कि भारत की सुंदरता यह है कि यहां सभी राष्ट्र एक साथ रहते हैं जबकि सभी धर्म और आस्था के मामले में अलग हैं और भारत का नारा भी है ‘हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में हैं भाई भाई हैं’। और इस नारे को हकीकत में बदलना हम सबकी जिम्मेदारी है।
अपने संबोधन में डॉ. समधु छत्री ने कहा कि बौद्ध धर्म वास्तव में सिद्धांतों और सिद्धांतों से जुड़े धर्म का नाम है। बौद्ध धर्म की मूल शिक्षा और दर्शन अहिंसा है।
स्वामी परमानंद पुरी जी महाराज ने कहा कि आज मुसलमानों के बारे में कई भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं, उनमें यह है कि मुसलमान हिंसक और आक्रामक होते हैं जबकि मुसलमान दुनिया की ऐसी कौम है, जो आस्था, न्याय, ईमानदारी और सहिष्णुता का प्रदर्शन करती है। जो लोग मुसलमानों को गलत ठहरा रहे हैं, उन्हें मुसलमानों के धर्म और उनकी नैतिकता और चरित्र को सही मायने में समझने की जरूरत है।
सर सैय्यद अकादमी व दाराश्कोह सेंटर के निदेशक प्रो. अली मोहम्मद नकवी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि धार्मिक सहिष्णुता और विस्तार की आवश्यकता आज पूरी दुनिया में है, लेकिन इस विचारधारा और विचार को बढ़ावा देने के लिए हमें प्रयास करना चाहिए। दुनिया के लगभग सभी धर्म बुनियादी सामाजिक मूल्यों को साझा करते हैं, इसलिए यदि हम इन परंपराओं और शिक्षाओं को अपने व्यावहारिक जीवन में एकीकृत करते हैं, तो एक शांतिपूर्ण समाज अस्तित्व में आएगा।
डा. रेहान अख्तर कासमी (संयोजक वेबिनार/सेमिनार) ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की विशेषता यह है कि यहां इस्लाम के साथ-साथ अन्य धर्मों की न केवल शिक्षा दी जाती है बल्कि अन्य धर्मों पर शोध कार्य भी किया जाता है।
इस अवसर पर डा. नदीम अशरफ (समन्वयक अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार/सेमिनार) ने धर्मों के अध्ययन की उपयोगिता पर बल दिया।
डा. सफदर जुबैर नदवी (फिका अकादमी के प्रभारी) ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि मानव जाति हमेशा अपने धर्म से जुड़ी रहती है, भले ही वह धर्म किसी भी रूप में मौजूद हो।



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